Saturday, August 8, 2009

लकड़ी जल कोयला भई

कबीर ने कहा है..

लकड़ी जल कोयला भई कोयला जल भई राख।

मैं बावरि ऐसी जली कोयला भई ना राख
।।

अगर मुझे सही सही याद है तो कबीर का ये दोहा ऐसे ही है..

कोई पाठक हमें इस दोहे का अर्थ समझायेंगे।
दरअसल थोड़ा हम आपसे जान लें फिर इस दोहे के बारे और विस्‍तृत चर्चा करेंगे।

और अभी देर भी हो रही है मुझे.. दुबारा इस पोस्‍ट पर आऊं तब तक आगन्‍तुक पाठक इसके अर्थ को खोलें

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