Tuesday, July 19, 2011
हम जैसे स्वयं को अनकंडीशनल प्रेम कर सकते हैं... यानी कुछ भी कैसे भी जो हमसे अनुचित हो गया है, बावजूद इसके हम स्वयं को प्रेम कर सकते हैं, क्षमा कर सकते हैं.. क्षीणतम ही हो किन्तु, यह क्षमता हममें है.. ऐसे ही हमारा प्रेम ईश्वर की बनाई हर चीज के प्रति हो जाना चाहिए। यह व्युत्क्रमण काम का साबित हो सकता है.. हमें जीवन के रहस्य को समझने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा सकता है। .. बस अभी इतना।
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आपका कहा हुआ सही लगा।
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